रामचरितमानस 40+ चौपाई अर्थ सहित – पूरी जानकारी हिंदी में

रामचरितमानस चौपाई अर्थ सहित- नमस्कार भक्तों आज हम इस लेख के माध्यम से आपको रामचरितमानस की चौपाइयों के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे जिसमें आपको 40 से भी ज्यादा चौपाइयां दी गई है इस वेबसाइट के माध्यम से हम मंत्र आरती चौपाई आदि की जानकारी प्रदान करते हैं

रामचरितमानस चौपाई अर्थ सहित

रामचरितमानस चौपाई अर्थ सहित

1. श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभयदारुणं।
2. नवकञ्जलोचन कञ्जमुख करकञ्जपद कञ्जारुणं।
3. कण्ठकञ्जमूच कञ्ज कपाल कञ्ज मूरध्वाजेश।
4. कान्तकञ्जपद कञ्जनैन कञ्जरूदर कांति केश।
5. वत्सकञ्जलकौसलेंद्र कञ्जदिन वरदायक।
6. सर्वसुखमय सुलक्षण ग्राम नीत जनमुख कुझाकरीं।
7. सीतागीता भरत मातु कूसलकञ्ज कपालकुठारीं।
8. विभीषणहृदय बिभीषण आदि नीत नायक सो दिनमीं।
9. सिरमुखी लङ्क जरि सरिषप सुवाकु सरी रघुनायक।
10. सुनु सरीता यमुना तीर नाथ भगत मन हरष मुसुकाई।
11. बासु बसु कपुत्र जीवन जो जनहिं सोहै सु अगम ताता।
12. अज अनिल मुकुल महु नाहिं जो काहू फूंकत नहिं मोहि चरित बिसाला।
13. चाहत राजपद चाहत सुरपद नाहिं तो कुछ आप अदला।
14. कौमरम बचन प्रबिशेश नाहिं तो तुलसी होइ तु अदला।
15. बिनय बचन कबहूं करै न कहूं सुक राज विलास।
16. निज पर प्रीति मन माहिं सु अनुराग समरथ विपास।
17. गुणग्राम पुर गुह तुझको माहि सकल भजन करै तो जिय में बसै।
18. तुलसी बिनय कर बारबारूँ मानत नहिं आतुरूँ।
19. बोलै प्रभु कपि रिपु सन्हारूँ समुझै नहिं तव बातूं।
20. निज मन में अपन आपु पाकर तूँ तू न आवै हाथ।
21. जाकै सो काम न सुजसु जन अंधकार सब अवधूत।
22. बिनु सुख भवन अस अधिक आपद दुःख दुरभाग्य संकट।
23. सब धर्म गो ब्राह्मण पुन्य केवड़ देव प्रीत भगति बिनु भाग।
24. अखिल निज जानि तात न होइ अन्य कछु सब करै बिनय।
25. बासु समित मन सुजन बानर उचारि सुक कठिन काज।
26. बाट गरुड़ मृग भानु सरथि कहुँ पूरण बिधि तूं सजावै।
27. बिसेष कलियुग कानन तू भगत हित बिपरीत सुख करइहिं समय।
28. तू दीनबन्धु हित निज दास तव तात न किए काज।
29. तात मामु मुख जैसे तें बिनय करि साधी कछु न तजय।
30. जेहिं बिद्या कल्याणी सब सुख करै भाग्य समेत भगत हित लय।
31. सब नाथ समर्पइँ तुलसी कौ नयन मोहि दीजै सब कज।
32. बिरह न जानै उबै मृत्यु को दिन देह चाहत नित जीवै।
33. जब की नाथ तुम्ह सहाय सदय बिप्र के हित देहि धारै।
34. तोहि भवसिन्धु सुत सरण तुरत पार पावै हम तारै।
35. सुनु भगत सत्य संग तुलसी बिनय करहु त्राहि संकट भारी।
36. मन क्रोध कुपति कपट अधर्म आग न ते तरहि कर संहार।
37. तात ते राम सुजसु न आए सब दुख तव तें होइहैं पार।
38. जाहि आवा तेहि उपदेस बचन रहमानी आपद हरण कारण।
39. जाहि आवै सो साधै सुभवन उत्तरम उद्धारण आपद सारण।
40. तुलसी दास प्रभु पद तें जानै तब हि सुख शोक भव तर आनै।

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