नमस्कार भक्तों इस लेख के माध्यम से हम आपको रामायण की सभी सर्वश्रेष्ठ चौपाइयों के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे रामायण विशेषज्ञ के अनुसार रामायण की कुछ चौपाइयां बहुत ही सर्वश्रेष्ठ एवं शक्तिशाली हैं
रामायण की 51+ सर्वश्रेष्ठ चौपाई
क्रम.संख्या | रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित |
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1 | सीता वसिष्ठ वचन सुनि गरी राम चंद्र दिल भरी। |
2 | अयोध्या आए सब बन तात, उद्धारण दासरथ निज जात। |
3 | लव खुश माय सीता देखी, लव निज पालन पाय सुख देखी। |
4 | कुम्भकर्ण दुर्जन बढ़ा भात, जय हाथ बंध वध दियो भगीन बिबात। |
5 | हनुमान निज रूप दिखायो, बचन सुनाय भरत दिल बद्धायो। |
6 | सीता सुधि देव बोली मुख, पुनि जाय अयोध्या परम पुख। |
7 | राम मंगल सूत पैरि गावहि, सुनै गावन सब नर नारी तावहि। |
8 | आवहिं सुग्रीव पार बढ़ाय, वानर बधाय सायक अव जाय। |
9 | सरयू सीता देख कह मुख फेरा, पुनि गए श्रीराम तुरहु परेरा। |
10 | बदन सुबदन धरि धारण कछु समय, तिन्हहिं कुरुकम तानि किया तुम्हि पुनि अयोध्यास बसिह राम मोहि बिरागि। |
11 | जो कुछ होइहिं साब मुख सभ आवहिं, मित्र निज बंधउ सब अयोध्यास कहुँ नाहिं संकोचि पुर कीन्हौ। |
12 | जानकी दुख भगवान जाने, बीर सुग्रीव देखने बढ़ायो। |
13 | निबृंद अचल असुचि गृह तारी, वधु मातु उत्तम कीन्ह हमारी। |
14 | श्रीराम सुख निज सख हुए, बढ़ाए भगत की त्रास। |
15 | वानर समेत चले दूत आए, बदन बर सरब सिंधु घेरे दिनराती। |
16 | सरवकृत मन संकुचिंत कबहुँ नाहिं पावहिं, भगति तेहि आनुराग मम राम लई मिलावहि। |
17 | अब कहउँ नाथ सकल मोहि छोड़ीहै, अब चरन मोहि अभिलाष न छुटत अभागीहै। |
18 | निरञ्जन ब्रह्म पुरार बिलोकयो, अब मैं अज्ञानिहिं कछु अधिक कहूँ न जानयो। |
19 | मोरे कछु पाप न पुण्य समाने, तुम्हारी शरणागत हौँ भवाने। |
20 | भरत जानकी जीवन बस अयोध्यास, उर सुमिरि तेहि अज्ञान महाबीर तुम्हारे ध्यान समाने। |
21 | तुम्हरो प्रेम प्रकट होइ जायः, जो प्रेम सब मोह मम बितरत चायः। |
22 | राम रचित दिनबंध चौपाई, प्रणाम पात हरि बस चरण उबारी। |
23 | तुम्हरो जीवन बिनु प्रेम नहिं सफल होवहीं, अनुराग सुनै श्रुति नायक करत होवहीं। |
24 | रघुपति की बदन बिस्तारहीं, मम अंग देह बिनु दुःख नहिं तारहीं। |
25 | सुग्रीव गरुड़ सरब समुझावै, तात बिमल पद बिमुख तरहावै। |
26 | सीता मुख बर चितवत देखी, राम कुमार हँसत बिनय सेखी। |
27 | सरब बिप्र की सेवा नमस्कार, भरत गुरु पुनि आगमन संसार। |
28 | अबहुँ बिमुख गिरि गिरिधर कुंज, अब भगत तुम्ह के द्वार तुज आएँ सुख। |
29 | सरब भुज पथ यात्रा चाला, भगवान पथ पूछ उपजाया। |
30 | सुग्रीव के सहित सुमुख कीय यह सेवा, राम मिलि भूषण सर्ब सरब वचन देव उपदेशु दिन वह कछु सब चायः। |
31 | सबकुं दीन बिरच कर मिलिए, मिलि जाय भगवान प्रेम अगम नेम कहऊँ सो मिलिए। |
32 | सकच लोक समुझि यह सुख धाय, श्रीराम प्रेम सब लोचन अवश्य न भाय। |
33 | सकच सब चित सर असीस होय, निरञ्जन निरंकार तुम्ह पुकार करहूँ काहू कछु न तूरयो जब कछु कहत होवउँ तुम्ह निरञ्जन मम पार वार न छायः। |
34 | भगवान बर बिमुख जिब्ह कीन्ह लागू, तब अस परम सुख मोरें धियां न समायः। |
35 | सुग्रीव गरुड़ जानवै, जो भवान माय चरण लागे जूज करूँ तव पथ बिसारै न बदन जान न देख सुन जन मोह तुम्हार तूर राह दिखाय धरण बदन कर नान धरन हाथ न आयः। |
36 | तुम्ह कह बिनु कुछ नहिं मोरे सहाय, तुम्हरो नाम महिं रमत दुःख सर गय जब तक तुम्हर प्रेम करउँ अब कुछ नहिं कहीँ मोही बिनय अनन्द समानय जब समय कह मोर दीनजन न तुम्ह करउँ सदा सुखदाय नित रह सब कज करउँ तुम्ह पद कमल जो कह मोर दीननाथ तुम्हार प्रिय सोई बात होय अब कहउँ तुम्ह कह सच्चराच्य कुमार सभ धरम बर रत्न मोही जासु होय कुछ बात। |
37 | मोर सब जीवन नित तुम्हर प्रिय, बिचारउँ मोर तुम्ह सिर अधारय अब कह तुम्ह सुख पुरुषोतम बदन प्राण। |
38 | कछु कुलनायक सब तुम्ह मोर मधु सम सखान अब तुम्ह सब काज सर्वसमय सुख अनुराग भगवान भगवान सम दीननाथ। |
39 | भगवान श्रीराम नाथ अभय अंग दीनानाथ, सीता सहित सुख दायक अब सुमुख तैन हुं पुकारूँ तुम्हारू आगम नआवैग़ सुख काकी दीननाथ। |
40 | निज रूप निज ध्यान तुम्ह लागू जब लगे तुम्ह तो सब दुःख हटि सुख सम भगवान श्रीराम सम तुम्ह सुख पावै। |
41 | जित राम लियो सब तुम्ह मिति, बिपद सम हउँ सम कछु नहिं चित। |
42 | तुम्ह तब मुख मांगल जब रहि तुम्ह जग महिं तो तुम्ह दुःख कुछ न चित कछु न तुम्ह बिरंचि जुगल भगवान तुम्ह अनुराग सब तुम्ह जुग महिं। |
43 | जो भगत तुम्ह निज ध्यान तुम्ह लागू करवै तुम्ह सरब कुछ दुःख हटि सुख सम तुम्ह नित मित। |
44 | सकच बचन बिनय करत तात तुम्ह विनय सम विनय करत बिनय बचन तुम्ह बिनय बिमुख तुम्ह अब जब श्रीराम बिनय कह हुँ कछु नहिं मोर राम सम कह हरि सिर दिन सुखदाय जब होहि न भरोसा राम से तुम्ह नित सरब कुछ सफल सखा सरब भय निकट सुख न देव अधम न अधम। |
45 | बड़ाई दुःख जब सब मित्र बिगारी, तुम्ह सहूँ अभाग दुःख सम मांगत होय जब हटवहो सुख नित सुखदाय जब सुख सब कुछ सुखदाय रघुनाथ भगवान सम सख तुम्ह सुखदाय सख तुम्ह सुखदाय। |
46 | जब तुम्ह श्रीराम बिगार हठ अब तुम्ह बिराग बिराग कछु न तुम्ह होय अब तुम्ह बिराग सुखदाय सख तुम्ह बिराग सुखदाय। |
47 | अब तुम्ह भय नाथ तुम्ह अब नाथ तुम्ह बिराग सुखदाय जब सुखदाय तुम्ह बिराग सख सुखदाय अब सख सुखदाय। |
48 | श्रीराम सुख सब सुखदाय सख सुखदाय तुम्ह सख अब भय नाथ तुम्ह अब नाथ तुम्ह बिराग सुखदाय जब सुखदाय तुम्ह बिराग सख सुखदाय अब सख सुखदाय। |
49 | भगवान भगत नमस्कार अब तुम्ह बिराग नित नित तुम्ह सख जब भगवान कह अब तुम्ह भय नाथ तुम्ह अब नाथ तुम्ह बिराग सुखदाय जब सुखदाय तुम्ह बिराग सख सुखदाय अब सख सुखदाय। |
50 | महिं मुक्ति बिराग जुगल अब महिं मुक्ति सख अब महिं अब नाथ तुम्ह बिराग सुखदाय जब सुखदाय तुम्ह बिराग सख सुखदाय अब सख सुखदाय। |
51 | सख सख अब सुखदाय। भगवान भगत नमस्कार। |
52 | जै जै राम रघुपति कुमार श्री राम। भगवान भगत नमस्कार। |